22-02-90   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

शिव जयन्ति पर अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज त्रिमूर्ति शिव बाप हर एक बच्चे के मस्तक पर तीन तिलक देख रहे हैं । सभी बच्चे दिल के उमंग-उत्साह से त्रिमूर्ति शिव जयन्ति मनाने आये है। तो त्रिमूर्ति शिव बाप अर्थात् ज्योतिर्बिंदु बाप बच्चों के मस्तक पर तीन बिन्दियोँ का तिलक देख हर्षित हो रहे हैं । यह तिलक सारे ज्ञान का सार है । इन तीन बिन्दियोँ में सारा ज्ञान-सागर का सार भरा हुआ है । सारे ज्ञान का सार तीन बातों  में है - पढ़ाई आत्मा और ड्रामा अर्थात् रचना। आज का यादगार दिवस भी शिव अर्थात बिन्दु का है । बाप भी बिन्दु, आप भी बिन्दु और रचना अर्थात् ड्रामा भी बिन्दु । तो आप सभी बिन्दु, बिन्दु की जयन्ति मना रहे हो । बिन्दु बन मना रहे हो ना! सारा प्रकृति का खेल भी दो बातों का है - एक बिन्दु का और दूसरा लाइट ज्योति का। बाप को सिर्फ बिन्दु नहीं लेकिन ज्योतिर्बिंदु कहते है । रचना भी ज्योतिर्बिंदु है और आप भी हीरो पार्टधारी ज्योतिर्बिंदु हो, न कि सिर्फ बिन्दु हो । और सारा खेल भी देखो - जो भी कार्य करते है, उसका आधार लाइट है । आज संसार में अगर लाइट फ़ैल हो जाए तो एक सेकण्ड मैं संसार, संसार नहीं लगेगा। जो भी सुख के साधन है उन सबका आधार क्या है? लाइट। रचयिता स्वयं भी लाइट है । आत्मा और परमात्मा की लाइट अविनाशी है। प्रकृति का आधार भी लाइट है लेकिन प्रकृति की लाइट अविनाशी नहीं है । तो सारा खेल बिन्दु और लाइट है । आज के यादगार दिवस को विशेष निराकार रूप से मनाते है । लेकिन आप कैसे मनायेंगे? आप विशेष आत्माओं का मनाना भी विशेष है ना। ऐसा कभी सोचा था कि हम आत्माएं ऐसे पदमापदम भाग्यवान है जो डायरेक्ट त्रिमूर्ति शिव बाप के साथ साकार रूप में जयन्ति मनायेंगे ' कभी स्वपन में भी संकल्प नहीं था। दुनिया वाले यादगार नित्र से जयन्ति मनाते और आप चैतन्य में बाप को अवतरित कर जयन्ति मनाते हो। तो शक्तिशाली कौन हुआ - बाप या आप ? बाप कहते हैं - पहले आप। अगर बच्चे नहीं होते तो बाप आकर क्या करते! इसलिए पहले बाप बच्चों को मुबारक देते है, मन के मुहबत की मुबारक । बाप को दिल में प्रटश कर लिया है, तो दिल में बाप के प्रत्यक्ष करने की मुबारक। बाप को दिल में प्रत्यक्ष कर लिया है, तो दिल में बाप को प्रत्यक्ष करने की मुबारक। साथ-साथ विश्व की सर्व आत्माओं प्रति रहमदिल विश्व-कल्याणकारी की शुभभावना-शुभकामना से विश्व के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने की सेवा के उमंग-उत्साह की मुबारक ।

बापदादा सभी बच्चों के उत्साह का उत्सव देख रहा था। सेवा करना अर्थात् उत्साह से उत्सव मनाना। जितनी बड़ी सेवा करते हो बेहद की, उतना ही बेहद का उत्सव मनाते हो। सेवा का अर्थ ही क्या है? सेवा क्यों करते हो? आत्माओं में बाप के परिचय द्वारा उत्साह बढ़ाने के लिए । जब सेवा के प्लान बनाते तो यही उत्साह रहता है ना कि जल्दी-से- जल्दी वंचित आत्माओं को बाप से वर्सा दिलाये, आत्माओं को खुशी की झलक का अनुभव करायें । अभी किसी भी आत्मा को देखते हो - चाहे आज के संसार में कितना भी बड़ा हो, लेकिन हर आत्मा के प्रति देखते ही पहले संकल्प क्या उठता है? यह प्राइम मिनिस्टर है, यह राजा है - यह दिखाई देता है या आत्मा से मिलते हो वा देखते हो? शुभभावना उठती है ना कि यह आत्मा भी बाप से प्राप्ति की अंचली ले लेवे। इस संकल्प से मिलते हो ना । अब यह शुभभावना उत्पन्न होती है तब ही आपकी शुभभावना का फल उस आत्मा को अनुभव करने का बल मिलता है । शुभभावना आपकी है लेकिन आपकी भावना का फल उनको मिल जाता है । क्योंकि आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभभावना के संकल्प मैं बहुत शक्ति है । आप एक एक श्रेष्ठ आत्मा का एकएक शुभसंकल्प वायुमण्डल की सृष्टि रचता है। संकल्प से सृष्टि कहते है ना! यह शुभभावना का शुभसंकल्प चारों ओर के वातावरण अर्थात सृष्टि को बदल देता है । इसलिए आने वाली आत्मा को सब अच्छे-ते-अच्छा अनुभव होता है, न्यारा संसार अनुभव होता है । थोड़े समय के लिए आपके शुभसंकल्प की भावना के फल में वह समझते है कि वह न्यारा और प्यारा स्थान है, न्यारे और प्यारे फ़रिश्ते आत्माएं है । कैसी भी आत्मा हो लेकिन थोड़े समय के पढ़ाई उत्साह में आ जाते है। सेवा का अर्थ क्या हुआ? उत्सव मनाना अर्थात् उत्साह में लाना। कोई भी चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे वाणी द्वारा, चाहे संकल्प द्वारा करते हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं के हर सेकण्ड, हर कार्य, हर संकल्प, हर बोल उत्सव है क्योंकि उत्साह से करते हो और उत्साह दिलाते हो । इस स्मृति से कभी भी थकावट नहीं होगी, बोझ नहीं लगेगा। माथा भारी नहीं होगा, दिलशिकस्त नहीं होंगे। जब किसको थकावट होती है वा दिल सुस्त होती है तो दुनिया में क्या करते है? कोई-न-कोई मनोरंजन के स्थान पर चले जाते है । कहते है - आज माथा बहुत भारी है, इसलिए थोड़ा मनोरंजन चाहिए । उत्सव का अर्थ ही होता है मौज मनाना। खाओ-पियो मौज करो - यह उत्सव है । ब्राह्मणों को तो हर घड़ी उत्सव है, हर कर्म ही उत्सव है । उत्सव मनाने में थकावट होती है क्या? यहाँ मधुबन में जब मनोरजन का प्रोग्राम करने हो - भल ११ बज जाते हैं तो भी बैठे रहते हो । क्लास में ११ बज जाएँ तो आधा क्लास चला जाता है। मनोरंजन अच्छा लगना है ना ' तो सेवा भी उत्सव है - इस विधि से सेवा करो। स्वयं भी उत्साह में रहो, सेवा भी उत्साह से करो और आत्माओं में भी उत्साह लाओ तो क्या होगा ? जो भी सेवा करेंगे उस द्वारा अन्य आत्माओं का भी उत्साह बढ़ता रहेगा। ऐसा उत्साह हैं? वा सिर्फ मधुबन तक है? वही जाने से फिर सरकमस्टास दिखाई देंगे? उत्साह ऐसी चीज़ है जो उसके आगे कुछ भी नहीं है । जब उत्साह कम हो जाता है तब परिस्थिति बार करती है । उत्साह है तो परिस्थिति वार नहीं करेगी, आपके ऊपर बलिहार जायेंगी ।

आज उत्सव मनाने आने हो ना। शिव जयन्ति को उत्सव कहते है। उत्सव मनाने नहीं आये हो लेकिन 'हर घड़ी उत्सव' है - वह अंडरलाइन करने आये हो। ताकत भी न हो, मानो शरीर में शक्ति नहीं है वा धन की शक्ति की कमी के कारण मन में फील होता है कि वह नहीं हो सकता लेकिन उत्साह ऐसी चीज़ है जो आप मैं अगर उत्साह है तो दूसरे भी उत्साह में आगे बढ़कर के आपके सहयोगी बन जायेंगे । धन की कमी भी होगी तो कहॉ-न-कहॉ से धन को भी उत्साह खींचकर लायेंगा। उत्साह ऐसा चुम्बक है जो धन को भी खीचकर लायेगा। साथियोँ को भी खींचकर लायेगा, सफलता को भी खींचकर लायेगा। जैसे भक्ति में कहते है ना - हिम्मत, उत्साह, धुल को भी धन बना देता है । इतना हो जाता है! उत्साह ऐसी अनुभूति है जो किसी भी आत्मा की कमजोरी के संस्कार का प्रभाव नहीं पड़ सकता । आपका प्रभाव उस पर पड़ेगा उसका प्रभाव आपके ऊपर नहीं आयेगा। जो ख्याल-ख्वाब में भी नहीं होगा वह सहज साकार हो जायेंगा । यह बापदादा का सभी सेवाधारियां को गारण्टी का वरदान है । समझा?

 

बापदादा खुश है - अच्छी लगन से सेवा के प्लैन्स बना रहे हो । संस्कारो को मिलाना अर्थात् सम्पूर्णता को समीप लाना और समय को समीप लाना। बापदादा भी देख रहे है - संस्कार मिलन की रास अच्छी कर रहे थे, अच्छी खुशबू आ रही थी! तो सदा कैसे रहना? उत्सव मनाना है, उत्साह मैं रहना है । खुद न भी कर सको तो दूसरों को उत्साह दिलाओ तो दूसरे का उत्साह आपको भी उत्साह में लायेगा । निमित्त बने डुए बड़े यही काम करते है ना। दूसरों को उत्साह दिलाना अर्थात् स्वयं को उत्साह में लाना। कभी बाई चांस १४ आना उत्साह हो तो दूसरों को १६ आना उत्साह दिलाओ तो आपका भी २ आना उत्साह बढ़ जायेंगा । ब्रह्या बाप की विशेषता क्या रही? कोयले उठाने होंगे तो भी उत्साह से उठवायेंगे, मनोरंजन करेंगे। (कोयले के 35 वेगन आने थे  बापदादा मुरली में कोयले की बात कर रहे थे और थोड़े समय बाद ऐसा समाचार मिल कि आबू रोड में कोयले वेगन पहुँच गई है) अच्छा!

सभी पांडव क्या करेंगे? सदा उत्साह में रहेंगे ना। उत्साह कभी नहीं छोड़ना। अभी का उत्साह आपके जड-चित्रों के आगे जाकर, पहले उत्साह, हिम्मत लेकर फिर कार्य शुरू करते है । इतनी उत्साह भरी आत्माये हो जो आपके जड़-चित्र भी औरों को उत्साह हिम्मत दिला रहे है! पांड्वोका का महावीर का चित्र कितना प्रसिद्ध है! कमज़ोर शक्ति लेने के लिए महावीर के पास जाते हैं! अच्छा!

चारों ओर के सर्व अति श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को, सदा ज्योतिर्बिंदु बन ज्योतिर्बिंदु बाप को प्रत्यक्ष करने के उमंग- उत्साह में रहने वाले, सदा दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झन्डा लहराने वाले, सदा विश्व में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले - ऐसे हीरे तुल्य बाप की जयन्ति सो बच्चों की जयन्ति की मुबारक हो। सदा मुबारक से उड़ने वाले है और सदा रहेंगे - ऐसे उत्साह में रहने वाले, हर समय उत्सव मनाने वाले और सर्व को उत्साह दिलाने वाले, महान शक्तिशाली आत्माओं को त्रिमूर्ति शिव बाप की याद-चार, मुबारक और नमस्ते ।

डबल विदेशी भाई-बहनों के ग्रुप से मुलाकात

बाप और बच्चों का इतना दिल का सूक्ष्म कनेक्शन हैं जो कोई की ताकत नहीं जो अलग कर सके । सबसे बड़े-ते-बड़ा नशा बच्चों को सदा यही रहता है कि दुनिया बाप को याद करती लेकिन बाप किसको याद करता! बाप को तो फिर भी आत्मायें याद करती लेकिन आप आत्माओं को कौन याद करता! किनना बड़ा नशा है! यह नशा सदा रहता है? कम ज्यादा तो नहीं होता? कभी उड़ते, कभी चढ़ने, कभी चलते.. ऐसे तो नहीं? न पीछे हटने वाले हो, न रुकने वाले हो लेकिन स्पीड चंज हो जाती है। बापदादा सदा बच्चों का खेल देखते रहते हैं - कभी चलना शुरू करते है, फिर क्या होता है? कोई-न-कोई ऐसा सरकमस्टांस बन जाता है, फिर जैसे कोई धक्का देता है तो चल पड़ते है, ऐसे कोई-न-कोई बात ड्रामा अनुसार होती है जो फिर से उड़ती कल्प की ओर ले जाती है । क्योंकि ड्रामानुसार निश्चयबुद्धि है, दिल में संसंकल्प कर लिया है कि बाप मेरा, मैं बाप का', तो ऐसी आत्माओं को स्वत: मदद मिल जाती है । मदद मिलते में कितना समय लगता है? (सेकण्ड) देखो- फोटो निकल रहा है । बाप का कैमरा सेकण्ड में सब निकाल लेता हैं । कुछ भी हो जाए लेकिन 'बाप और सेवा से कभी भी किनारा नहीं करना है । ' याद करने में वा पढ़ाई पढ़ने में मन नहीं भी लगे तो भी जबरदस्ती सुनते रहो, योग लगाते रहो -ठीक हो जायेंगे। क्योंकि माया ट्रायल करती है । यह थोड़ा-सा किनारा कर ले तो आ जाऊँ इसके पास। इसलिए कभी किनारा नहीं करना। नियमो को कभी नहीं छोड़ना। ' अपनी पढ़ाई, अमृनवेला, सेवा जो भी दिनचर्या बनी हुई है, उसमें मन नहीं भी लगे लेकिन दिनचर्या में कुछ मिस नहीं करो। भारत में कहते हैं - 'जितना कायदा उतना फायदा। ' तो ये जो कायदे बने हुए है, नियम बने हुए है उसको कभी भी मिस नहीं करना है। देखो, आपके भक्त अभी तक आपका नियम पालन कर रहे हैं। चाहे मंदिर में मन नहीं भी लगे तो भी जायेंगे जरूर। यह किससे सीखे? आप लोगों ने सिखाया ना! सदैव यह अनुभव करो कि जो भी मर्यादायें वा नियम बने है, उसको बनाने वाले हम है। आपने बनाया है या बने हुए मिले है? लां-मेकर्स हो या नहीं? अमृतवेले उठना - यह आपका मन मानता है या बना हुआ है इसलिए इस पर चलते हो - आप स्वयं अनुभव करते, चलते हो या डायरेक्शन या नियम बना हुआ है इसलिए चलते हो? आपका मन मानता है ना! तो जो मन मानता है, वह मन ने ही बनाया ना! कोई मजबूरी से तो नहीं चल रहे हो - करना ही पड़ेगा। सब मन को पंसद है ना? क्योंकि जो खुशी से किया जाता है उसमें बंधन नहीं लगता है। यहाँ बाप ने आदि, मध्य, अंत - तीनों कालों की नालेज दे दी है। कुछ भी करते हो तो तीनों कालों को जान कर के और उसी खुशी से करते हो। बाप देखते है कि कमाल करने वाले बच्चे हैं । बाप से प्यार अटूट है इसलिए कोई भी बात होती है तो भी उड़ते रहते है। बाप से प्यार में सभी फुल पास हो। पढाई में नम्बरवार हो लेकिन प्यार में नम्बरवन हो। सेवा भी अच्छी करते है, लेकिन कभी-कभी थोड़ा खेल दिखाते है । जैसे बाप से नम्बरवन प्यार है, ऐसे मुरली से भी प्यार है? जब से आये हो तब से कितनी मुरलियाँ मिस हुई होंगी? कभी कोई ऐसे बहाने से क्लास मिस किया है? जैसे बाप को याद करना मिस नहीं कर सकते, ऐसे पढ़ाई मिस न हो। इसमें भी नम्बरवन होना है। बाप के रूप में याद, शिक्षक के रूप में पढ़ाई और सतगुरु के रूप में प्राप्त वरदान कार्य में लगाना - यह तीनों में नम्बरवन चाहिए। वरदान तो सबको मिलते है ना लेकिन समय पर वरदान को कार्य में लगाना - इसको कहते है वरदान से लाभ लेना। तो यह तीनों ही बाते चेक करना कि आदि से अब तक इन तीनों बातों  में कितना पास रहे, तब विजय माला के मणके बनेंगे । अच्छा!

बापदादा बच्चों के निश्चय और उमंग को देखकर खुश है। बापदादा एकएक की विशेषता देख रहे हैं । बापदादा जब देखते है कि कितना मुहब्बत से आगे बढ़ रहे है, मेहनत को - मेहनत नहीं समझते हैं, मुहब्बत से चल रहे है - तो खुश होते है। एकस्व की विशेषता की लिस्ट बापदादा के पास है । समझा? अच्छा!

दूसरा ग्रुप

सदा उड़ती कला में उड़ने वाले फरिश्ता अपने को समझते हो? फरिश्ते कहाँ रहते है- फर्श पर या अर्श पर? आप कहाँ रहते हो? अर्श पर रहते हो या नीचे रहते हो? ऊपर से नीचे आते हो ना। क्योंकि आप सभी अवतार हो, अवतरित हो जैसे बाप अवतरित हुए है आप श्रेष्ठ आत्मायें  भी अवतरित हुई हो, ऊपर से नीचे कर्म के लिए आती हो। रहने वाले सूक्ष्मवतन या मूलवतन में हो। तो अवतार किसलिए नीचे आते है? मैसेज देने के लिए नीचे आते है लेकिन स्थिति सदा ऊँची रहती है। देहभान रूपी मिटटी, पृथ्वी पर नहीं रहते, ऊपर रहते है। तो आप फरिश्ता के बुद्धि रूपी पाँव कभी धरती पर टच तो नहीं होते? वैसे भी जो सिकीलधे होते है, माँ-बाप उन्हों को धरती पर पाँव रखने नहीं देते। तो आप सभी परमात्मा के प्यारे हो, सिकीलधे हो, लाड़ले हो - तो धरती पर कैसे पाँव रखेंगे? पहले के जो राजायें होते थे वह दूसरों की धरती पर कभी पाँव नहीं रखते थे, अपनी धरती पर पाँव रखते थे। तो आप भी पुरानी दुनिया में क्या पाँव रखेंगे? अपना राज्य जब आयेगा तब राज्य करना। ऐसे रहते हो ना? कभी मिटटी में पांव रखने की दिल तो नहीं होती? कितना जन्म धरती की टेस्ट की? अभी तो अपना घर, अपना राज्य - दोनों याद है ना? तो सदा यह स्मृति रहे कि हम 'फरिश्ते' है। फरिश्ता सदैव लाइट में दिखाते है, चमकता हुआ दिखाते हैं। आप भी चमकते हुए सितारे हो, फरिश्ते हो- यह नशा सदा रहता है या कभी-कभी रहता है? जब एक बार अनुभव करके देख लिया कि यह सब असार संसार है, यह विष है। अनुभव कर लिया तो अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते। तो यह क्वेश्चन अपने आपसे पूछो - क्या है और कौन है? बाप तो सभी बच्चों के प्रति यही समझते है कि एक-एक बच्चा बाप का अति प्यारा और दुनिया से न्यारा है। आप बच्चों के लिए भी प्यारे-ते-प्यारा बाप है। बाप के सिवाए और कोई पास है क्या? नहीं तो बाप का क्वेश्चन उठता है कि बताओ वह कौन है? बाप भी देखे ना - कौन है वह जो बच्चों को खिंच लेता है। तो सदा याद रखना कि हम फरिश्ता अवतरित हुई आत्मायें है, ब्राह्मण-आत्मायें है। शूद्र आत्मा तो खत्म हो गई। उसे मार भी दिया गया, जला भी दिया। शुद्रपन के संसार का अंश भी नहीं। अभी नई ब्राह्मण-आत्मा, अवतरित हुई आत्मा है - यह खुशी है ना? शिव-जयन्ति सिर्फ बाप की नहीं, आपकी भी है। बाप - ब्रह्मा, ब्राह्मण सबके साथ अवतरित होते है। तो आपका भी बर्थ-डे है। बार-बार अपने से पूछो, चेक करो कि फरिश्ता हूँ। फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। सब बोझ छोड़ दिया ना या कभी-कभी बोझ उठाने की दिल होती है? स्थूल में भी बोझ का काम होता है तो माताएं कहती है - भाई ही करे। लेकिन बुद्धि का बोझ तो नहीं है? स्थूल बोझ के लिए तो ना कर देती हो, बुद्धि का बोझ तो नहीं उठाती हो? हल्का रहना अच्छा है या बोझ उठाना अच्छा है? जब बोझ उठाने वाला उठाने के लिए तैयार है तो आप क्यों उठाते? डबल लाइट रहो और उड़ते रहो। अच्छा।

बापदादा ने मिलन-मुलाकात के पच्छात स्टेज पर खड़े होकर झण्डा लहराया तथा सभी बच्चों को जन्मदिन की मुबारक दी।

बापदादा के साथ-साथ लवली और लक्की बच्चों का भी दिव्य जन्म-दिन है। इसलिए ऐसे लवली और लक्की बच्चों को मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो! सबसे ज्यादा मुबारक है लास्ट सो फास्ट जाने वालों को। छोटे बच्चे सदा ही विशेष प्यारे भी होते है और लड़ले भी।

विदाई के समय

आज बापदादा और अनेक बच्चों के जन्म-दिवस की पद्मगुणा मुबारक हो। चारों ओर के बच्चों के जन्म-दिवस की पद्मगुणा मुबारक हो। चारों ओर के बच्चों के दिल का याद-प्यार और साथ-साथ स्थूल यादगार स्नेह-भरे पत्र और कार्ड्स मुबारक के पाये। सबके दिल की आवाज़ बाप के पास पहुँची। दिलाराम बाप सभी बड़ी दिल वाले बच्चों को बड़ी दिल से बहुत-बहुत-बहुत याद-प्यार देते हैं। पद्मगुणा कहना भी बच्चों के स्वमान के आगे कुछ नहीं है, इसलिए डायमण्ड नाइट की, डायमण्ड वर्से से मुबारक हो। सभी को बाद-प्यार और सदा फरिश्ता बन उड़ते रहने की मुबारक हो। अच्छा! डायमण्ड मार्निग।